आपने गणपति जी की मूर्ति में जनेऊ की तरह नाग को उनके शरीर से लिपटे हुए देखा होगा. मुंबई के इष्ट देव सिद्धिविनायक की मूर्ति में भी वे नाग धारण किए दिखते हैं.

गणपति जी ने एक नाग को जनेऊ की तरह क्यों पहना ? नाग को इस तरह धारण करने के पीछे 2-3 प्रचलित कहानियां हैं, किंतु जो सबसे रोचक है. आइए वो आपको सुनाते हैं.

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जैसा कि आप सभी जानते हैं गणपति जी को मोदक बड़ा प्रिय है. एक बार कहीं गणपति जी को ढेर सारे मोदक मिले. उन्होने अपना प्रिय मोदक दबा के खा लिया.

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खा कर गणपति जी का पेट कुछ अधिक ही भर गया. उन्होने अपने मूषक को कहा, चलो अब घर चलते हैं. मूषक राज ने अपना आकार बड़ा किया . गणपति उनपे सवार हुए और सो गये..

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मूषक ने दौड़ लगाई… बड़ी तीव्र गति से भागने लगा.. गणपति जी गहरी निद्रा में सोते रहे.

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मूषक भागता भागता जा रहा था कि  अचानक सामने एक नाग आ गया.  उसे देख के मूषक डर गया. और एक झटके से रुक गया… गणपति अपने वाहन से नीचे गिर गये..

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और उनका पेट फट गया.. सारे मोदक बाहर आ गये. गणपति को बड़ा गुस्सा आया… मेरे प्यार मोदक की ये दुर्दशा किसने की …

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उन्होने जल्दी जल्दी मोदक उठा के पेट में डाले.. पर अब समस्या ये थी कि फटे पेट को कैसे बंद करें…

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नाग भी डर के मारे ये सब देखने लगा था… गणपति ने झट उस नाग को पकड़ कर कहा तेरे कारण मेरा पेट फटा है ना, अब तू ही इसे ठीक करेगा..

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और उस नाग से ही गणपति ने अपना पेट बाँध लिया और आगे चल पड़े… कहते हैं तब से उन्होने अपने शरीर पर उस नाग को धारण कर लिया है…

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कुछ लोग कहते हैं नागो के राजा वासुकी को उन्होने एक बार अपने गले में लपेट लिया था…तो   कुछ कहते हैं कि शिवजी ने ही उनसे नाग को जनेऊ की तरह धारण करने को कहा था.. वो कहानी कभी और …

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कारण चाहे कुछ भी हो पर ये नाग और उनके मस्तक पर त्रिनेत्र और चंद्र उन्हें भगवान शिव से जोड़ते हैं  और पिता के तत्वों की ….पुत्र में उपस्थिति का प्रतीक है ये .

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गणपति बप्पा मोरया !!

Illustrated by Kavita Jha