पर्दा खुलता है. मुन्ना, स्कूल ड्रेस में, अकेला स्टेज पर सिसक रहा है और छोटे छोटे कंकड़-पत्थरों को जूते मार
रहा है. उसका बस्ता एक तरफ़ पड़ा है. तभी दूसरा लड़का राकेश अपना बस्ता लटकाए प्रवेश करता है.
राकेश: अरे! तू यहाँ क्या कर रहा है? कब से ढूंढ रहा हूँ. सब चले गए. स्कूल ख़ाली हो गया. तेरी चक्कर में मैं
भी नहीं गया. चल, जल्दी चल, नहीं तो मम्मी पापा परेशान होंगे.
मुन्ना : तू जा.. मैं अभी नहीं जाऊँगा..
राकेश: क्यों नहीं जाएगा? चल… मुझे ज़ोरों की भूख लगी है.
मुन्ना नाराज़गी में एक पत्थर आकाश की तरफ़ मारता है
राकेश: अरे! तेरे गाल पर ये निशान कैसा? किसी ने मारा?
मुन्ना: इसलिए तो घर नहीं जा रहा हूँ. बेकार में हज़ार सवालों का जवाब दो.
राकेश: किसने मारा? बोनी ने?
मुन्ना: वो क्या मारेगा? ज़रा छू के तो देखे; हाथ तोड़ दूँगा उसका.
राकेश: तो किसने मारा?
मुन्ना: शुभ्रा मैडम ने.
राकेश: शुभ्रा मैडम ने! तब तो तुम्हें चॉकलेट खिलानी पड़ेगी यार
मुन्ना: मज़ाक मत कर. प्लीज!
राकेश: अरे यार! इतने ख़ूबसूरत हाथ से पिटा है तू, सेलिब्रेट नहीं करेगा? कितनी सॉफ्ट हैं शुभ्रा मैडम!
कितने करीने से सजती हैं! हाथों में कड़े और अंगूठियाँ. ऐसे हाथों से पिटकर, तेरी तो लाइफ सेट हो गयी.
मुन्ना: तू तो पिट पिटकर बेशरम हो गया है. कुछ भी बकता है
राकेश: टीचर से पिटना लकी होता है. मैं तो जानबूझ कर पिटता रहता हूँ. एक टीचर बता, जो मुझसे बचा
हो. सबके हाथों की गंध जानता हूँ. वैसे भी पापा कहते हैं, जो जितना पिटेगा उसका फ़्यूचर उतना ही ब्राइट
होगा
मुन्ना: लगता है तुम्हारे पापा ख़ूब पिटे हैं, इसलिए ऐसा कहते हैं
राकेश: सच्ची..खूब पिटे हैं. तभी तो इतनी बड़ी कंपनी के सीईओ हैं|
मुन्ना: पिटने के कारण? पढ़ने के कारण नहीं?
राकेश: नहीं नही, पढ़ना तो ज़रूरी है ही, लेकिन पिटना और भी ज़रूरी है. वो क्या है कि ज़्यादा पिटाई
खाने से आदमी निडर और बेशरम हो जाता है, मोटी चमड़ी का. इसलिए उसे ज़िंदगी में कभी पिटने से डर
नहीं लगता. बॉस की डांट-फटकार का भी कोई असर नहीं होता. ऐसा पापा कहते हैं|
मुन्ना: अच्छा!! और तुम्हारी मम्मी क्या कहती हैं?
राकेश: मम्मी… वो तो घर की बॉस हैं. पापा को डाँटती रहती हैं. पापा हंसते रखते हैं (पापा की नक़ल करते
हुए हँसता है) वैसे मेरे पापा हैं बहुत बोल्ड. बचपन की पिटाई का सही असर दिखता है उनपर. चल, अब
घर चलते हैं. बहुत भूख लगी है.
मुन्ना: तू जा. मैं नहीं जाऊँगा
राकेश: क्या यार!! ऐसे कैसे मैं जाऊँगा. चल तू मुझे पीट ले. गुस्सा उतर जाएगा. फिर घर चलेंगे
मुन्ना: तुझे क्यों पीटूँ? मुझे ग़ुस्सा शुभ्रा मैडम पर है और पीटूँ तुझे? किसी और का ग़ुस्सा तुम पे क्यों उतारूँ?
राकेश: अरे! यही तो ट्रेंड है आजकल. देख, मम्मी गुस्सा होती हैं पापा पर, और पिटता कौन है?
मुन्ना: हम
राकेश: करेक्ट!! अब बता, स्कूल में टीचरें ग़ुस्सा होती हैं प्रिन्सिपल पे, पर पिटता कौन है?
मुन्ना: हम
राकेश: बिल्कुल सही!! अब समझा? पिटना कितना ज़रूरी है? ज़िंदगी में अगर कुछ करना है, तो सबसे
पहले पिटने की कला में एक्स्पर्ट बनना पड़ेगा. इसलिए तो टीचर भी पीटती रहती है और घरवाले भी.
मुन्ना: अच्छा!!! पिटना भी आर्ट है!! मैं तो बेकार का रो रहा था. चल चल, मुझे भी बड़ी भूख लगी है.
मुन्ना बस्ता उठाता है और दोनों एक दूसरे के गले में बाहें डाले, उछलते कूदते निकल जाते हैं.
स्टेज खली होता है तो दूसरी ओअर से दो बच्चे टोनी और रिया स्टेज पर आते हैं. दोनों थोड़े चिढ़े हुए हैं.
मुन्ना और राकेश का इंतज़ार कर के परेशान हो रहे हैं. टोनी तुनक के कहता है
टोनी: इनके साथ तो खेलना ही नहीं चाहिए. 20 मिनट बीत गए. अब तक आए नहीं. पता नहीं, खुद को
कौन सा सलमान खान समझते हैं.
रिया: छोड़ न उनको. हम दोनों ही खेलते हैं.
टोनी: पर खेलें क्या? ट्रैफ़िक पुलिस और बाइकर वाला गेम खेलें
रिया: नहीं नहीं, कल ही भाई को पकड़ा था मामू ने. पापा की बाइक चला रहा था.
टोनी: क्यों?
रिया: अरे 18 के पहले बाइक चलाना बैन है डफ़र
टोनी: पर मैं तो
तभी मुन्ना और राकेश कपड़े बदलकर हाथों में भेल लिए हंसते-हंसते एंटर करते हैं
टोनी: लो आ गया चीप गेस्ट! फ़ील्ड का इनॉग्रेशन करने. म्यूज़िक बजाऊँ?? पी पी पीपी पीपी (शहनाई
जैसी आवाज़ निकालता है चिढ़ाने के लिए)
राकेश: अरे भेलवाले ने लेट करा दिया. बड़ी भीड़ थी. हमने उसे कुछ जादा ही फेमस कर दिया है.
मुन्ना रिया को अपना भेल देता है
रिया: ये क्या बचा खुचा दे रहा है? वो वाला दे
मुन्ना: अरे स्पाइसी खाने से तेरा पेट अप्सेट हो जाता है न, इसलिए ये छोटा वाला दे रहा हूँ
रिया: तू डैड है मेरा? बनने की कोशिश भी मत कर. ला इधर दे
कहते कहते रिया भेल छीनने लगती है, बाकि दोनों हंस पड़ते हैं
मुन्ना: अरे गिर जाएगा. गिरा तो आज तो तेरी पिटाई पक्की है .
राकेश: वाह! तूने तो खेल का नाम ही बता दिया
टोनी और रिया उसे घूर कर देखते हैं .
राकेश: आज हम पिटाई पिटाई खेलेंगे
टोनी: तू उस दिन के झगड़े का खुन्नस निकालना चाहता है?
राकेश: अरे नहीं नहीं
मुन्ना: पिटाई बड़ी इम्पोर्टेंट चीज़ है. इस बात पे कितनी बहस होती है. सरकार ने मना किया है, फिर भी ये
तो चलती ही रहती है छुपछुप के
टोनी: कुछ भी. मुँह खोलेगा तो बकवास ही निकलेगा तेरे से
राकेश: बास भी (हँसता है) इसलिए तो ये हमारा बासमती है
मुन्ना : फिर मज़ाक़ उड़ा रहा है. बता न, शुभ्रा मैडम ने मुझे पीटा कि नहीं?
राकेश : हाँ.. हाँ.. पीटा पीटा
रिया : फिर तो ठीक है.. नहीं तो सारा मज़ा ही किरकिरा हो जाता.
टोनी : क्यों तुम्हें पिटने में बड़ा मज़ा आता है?
रिया : नहीं नहीं…पिटवाने में. याद नहीं उस दिन नित्या को नताशा मैम से क्या पिटवाया था. मज़ा ही आ
गया था
राकेश : जादा चहको मत! सरकार ने पिटाई बैन कर दी. इल-लीगल है.
रिया : अरे वो सब मुंबई दिल्ली जैसे बड़े शहरों में है. अपने मिर्ज़ापुर में नहीं. यहाँ क़ानून लागू होने लगा, तो
अमेजन पर मिर्ज़ापुर का सीज़न 2 कैसे बनेगा?
टोनी : आज नहीं तो कल इन्हें पिटाई बंद करनी ही होगी. विदेशों में तो कब से हो गई है. घर-स्कूल-सड़क
कहीं नहीं कोई पीट सकता
रिया : सुन बाबू. यहाँ अपना ज्ञान छाँट लिया सो छाँट लिया, बाकि अपना मुँह बंद ही रखना. कहीं हमारे
मौसा जी ने सुन लिया तो मुँह थकुच देंगे.
मुन्ना : थकुच देंगे मतलब?
रिया : अरे कूट देंगे इसको.
टोनी : क्यों?
रिया : अरे मौसा जी साल में एक बार इंडिया इसीलिए तो आते हैं कि पूरे साल का भड़ास निकाल सके.
एयरपोर्ट से निकल के गाड़ी में बैठते नहीं हैं कि शुरू हो जाते हैं – ले पिटाई कि दे पिटाई. पूरे महीने जब तक इंडिया में रहते हैं भरपेट पिटाई करते हैं बच्चों की. जब मन भर जाता है तो अमरीका लौट जाते हैं.
राकेश : मगर यदि सच्ची में पिटाई यहाँ बंद हो गयी तो तुम्हारे मौसा जी क्या करेंगे?
रिया : अरे ऐसे कैसे बंद हो जाएगी. अपना कल्चर है पिटना-पीटना. न्यूज़ नहीं देखते हो? कैसे संसद में जूता
चप्पल सब चलता है.
मुन्ना : हाँ देखे तो हैं. किताब में भी लिखा है, जैसी जनता वैसा नेता.
टोनी : नहीं नहीं पापा बोल रहे थे अब परिभाषा बदल गयी है – जैसा नेता वैसी जनता
रिया : सही कहे! यार पिटाई का बड़ा फ़ायदा है.
राकेश : हाँ. पापा कहते हैं, पीटने वाले टीचर जीवन भर याद रहते हैं क्योंकि वो सच्चे जीवन के लिए हमें
तैयार करते हैं. जीवन में पुलिस का डंडा, और बिगड़ैल भीड़ का अंडा, कभी पूछकर नहीं पड़ता है. इसलिए
पिटाई की आदत होनी ज़रूरी है
रिया : दूसरा फ़ायदा पता है? जो पहले बुरी तरह पिटता है और बाद में सबको पीटता है वही असली हीरो
होता है. तो पिटना हीरो बनने की तैयारी है.
मुन्ना : कुछ भी गिना रही हो तुम, पिटने से कहीं सिक्स पैक बनता है जो हीरो बनेगा कोई?
टोनी : सही बोला बासमती! रिया तू रहने दे अब! पिटाई जल्द ही बंद हो जाएगी..
रिया : ऐसे कैसे बंद हो जाएगी? तेरी मम्मी तेरे पापा को धुनती है कि नहीं? बता
राकेश : रहने दे अब रिया
रिया : रहने क्या दें? तेरी मम्मी के डर से तेरे पापा म्याऊँ म्याऊँ नहीं करते हैं?
राकेश : मगर…
रिया : वो डर.. पिटाई का ही तो है.
मुन्ना : पर मेरे पापा…
रिया : तेरे पापा तो बेलन के डर से घर में हेल्मेट पहन के बैठते हैं, तूने ही तो बताया था.
तीनों : हमें नहीं खेलना तेरे साथ. तू गंदी बातें करती है.
रिया : तो जा न… मुझे भी नहीं खेलना…. तेरे भाग्य से पिटाई बंद होगा? ताकि तुझे फेल होने का फ्रीडम
मिल जाए?
तीनों लड़के चुपचाप निकल जाते हैं. रिया दर्शकों की ओर मुड़कर कहती है
रिया : बड़े आए हैं पिटाई बंद कराने वाले. इनकी मम्मी ने तो इनके पापा को पीट लिया. अब जब हमारी
बारी आनेवाली है तो पिटाई पर बैन लगाने चले हैं. (दर्शकों से ) देखिए ये पिटाई की परम्परा बड़ी ही सुंदर
और सरल है. इसे ऐसे ही आगे बढ़ाते रहिए, पीटते रहिए, जब तक मैं बड़ी हो कर अपने पति को पीटने के
लायक़ न बन जाऊँ. पिटने के बाद पीटने का सुख तो मिलना ही चाहिए…
कहकर वो जाने लगती है, अचानक पलट कर मुस्कुराकर चिल्लकर बोलती है
रिया: ऐसा मैं नहीं, मेरे मौसा जी कहते हैं…
और स्टेज से बाहर भाग जाती है.
पर्दा गिरता है.
– रमेश राजहंस