नारायण ! नारायण !
एक बार नारायण-नारायण करते नारद द्वारिकाधीश के दरबार में पहुँचे | उन्हें देख के श्री कृष्ण बहुत प्रसन्न हुए… बोले , “ देवर्षि !! द्वारिका में आपका स्वागत है..
देवर्षि नारद झुक कर बोले , “प्रभु, प्रणाम ! एक प्रश्न मेरे मन को परेशान कर रहा है…कि.. ये माया क्या है ?”
श्री कृष्ण मुस्कुराए और कहा, “माया के बारे में हम विस्तार से चर्चा करेंगे | अभी मैं टहलने जा रहा हूँ, आप मेरे साथ टहलने चलेंगे ?”
अवश्य प्रभु !!
दोनों दरबार से निकले और द्वारिका नगर से बाहर आ गए | नारद पूछते हैं, “प्रभु, हम कहाँ जा रहे हैं ?”
“बस ऐसे ही. हम थोड़ा घुमते हैं |”
दोनों चलने लगे … चलते चलते दोनों वीरान रेगिस्तान में पहुँच गया बड़ी चिलचिलाती गर्मी थी है..
और भगवान् श्री कृष्ण थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे | नारद जी की अवस्था खराब हो रही थी किन्तु वे कुछ बोल भी नहीं सकते थे..
अचानक श्री कृष्ण रुके. उन्हें देख के नारद मुनि ने राहत की सांस ली .
श्री कृष्ण ने उनकी तरफ देखा और बोले, “देवर्षि, मुझे न बड़ी प्यास लगी है | गला सूख रहा है. आप कहीं से जल की व्यवस्था कर सकते हैं ?”
“अवश्य प्रभु !” नारद जी निकल पड़े जल ढूँढने |
वे ढूँढते गए, ढूँढते गए, ढूँढते गए.. लेकिन भला रेगिस्तान में जल कहाँ मिलता है आसानी से |… उन्होंने इधर देखा, उधर देखा…बहुत ढूँढा जल. अंततः उन्हें दूर एक सरोवर दिखा… तो वो तेज़ी से उसकी ओर बढ़े… जब थोडा करीब गए.. तो देखा कि उस जलाशय के पास तो एक छोटी सी बस्ती भी है | बड़े प्रसन्न हुए|, “ प्रभु के लिए जल की व्यवस्था अब तो हो गयी |”
जैसे ही वे गाँव पहुँचे तो देखा सामने एक कुआँ था और एक बड़ी ही आकर्षक स्त्री कुँए से पानी भर रही थी | नारद जी उन्हें देखकर मोहित हो गए | उनके पास गए और उन्होंने कहा, “देवी, बहुत प्यास लगी है, थोडा जल मिलेगा?”
उस नारी ने मुस्कुराकर उनकी ओर देखा और कहा, “अवश्य मिलेगा |” और उन्हें पानी पिलाया |
नारद मुनि पानी पीते समय भी बार-बार उन्हें देख रहे थे और बड़े ही मोहित होते जा रहे थे | अंततः नारद जी की प्यास बुझ गयी. उन्होंने उस नारी से पुछा , “आपके पिता कहाँ हैं ?”
“घर पे | उनसे मिलना है ? ले चलती हूँ |”
जल भर के वो स्त्री आगे-आगे चल पड़ी, और मोहित होकर नारद जी भी उनके पीछे-पीछे | चलते-चलते नारद , उनके घर तक पहुँचे | घर के सामने उस स्त्री के पिता बैठे थे |
नारद जी ने पूछा , “आप इनके पिता हैं ?”
उन्होंने कहा, “जी… मैं सिर्फ इनका पिता ही नहीं, इस बस्ती का मुखिया भी हूँ | आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ ?
नारद जी बोले, “अरे वाह ! बहुत अच्छा लगा, बहुत अच्छा लगा सुन के | मैं नारद हूँ और मुझे आपकी पुत्री बड़ी अच्छी लगी, मैं उनसे विवाह करना चाहता हूँ |”
इस बात पे लड़की के पिता ने देवर्षि नारद को ऊपर से नीचे देखा और कहा, “देखने से तो आपका रूप रंग अच्छा है ..कद-काठी भी अच्छी है, चेहरे पे व्याप्त ज्ञान के तेज से स्पष्ट है कि विद्वता भी है… तो आप तो हमारी पुत्री के लिए अत्यंत योग्य वर हैं.. और मैं अपनी पुत्री से आपका विवाह भी करा सकता हूँ, किंतु एक शर्त है |”
नारद जी ने कहा, “क्या शर्त है ? मुझे आपकी हर शर्त मंजूर है ”
“मेरी ये शर्त है कि आप विवाह के पश्चात् घर जमाई बन के मेरे साथ ही रहेंगे और मेरे मरणोपरांत इस गाँव के मुखिया बन के इस गाँव की भी देखभाल करेंगे और लोगों की रक्षा करेंगे |”
नारद जी ऐसे सम्मोहित हुए थे उस कन्या से कि उन्होंने शर्त के लिए हाँ कर दी और खुशी-खुशी उस कन्या के पिता ने नारद जी से उनका विवाह कर दिया |
नारद जी वहीँ रहने लगे | शादी पुरानी हुई तो खेती और गृहस्थी भी करने लगे, उन्होंने घर का भार संभाल लिया | इस बीच नारद जी के बच्चे भी हो गए |
एक दिन उस कन्या के पिता गुजर गए…उनका देहांत हो गया और पूरा गाँव व्याकुल हो गया | उनका दाह-संस्कार के पश्चात नारद जी उस गाँव के मुखिया बन गए. सबकी देखभाल करने लगे वहाँ | जीवन में खुश थे नारद जी | पूरे गृहस्थ बन गए थे |
इसी बीच, एक दिन अचानक उस गाँव में बड़ी भीषण बाढ़ आई…सारे घर डूब गए | नारद जी अपने पत्नि और बच्चों को लेकर एक नाव में किसी तरह बचकर निकलने लगे, मगर जल की धारा इतनी तीव्र थी कि उनकी नाव पलट गयी…
उन्होंने अपने परिवार को बचाने का बड़ा प्रयास किया लगे, मगर एक-एक कर सब दूर हो गए.. और नारद जी भी एक तीव्र धारा में बहकर किसी तरह किनारे पहुंचे.. जब उन्हें सुध आई तो वो रोने लगे, “हाय मेरी स्त्री ! मेरे बच्चे ! हाय मेरी स्त्री ! मेरे बच्चे ! कहाँ चले गए | हे प्रभु, ये मेरे साथ क्या हुआ ? ऐसा नहीं होना चाहिए था, मैं इतना सुखी था जीवन में | आपने ऐसा क्यों किया मेरे साथ ?”
तभी नारद मुनि को अचानक किसी की आवाज सुनाई दी, “नारद ! नारद ! देवर्षि क्या कर रहे हैं आप ? वहाँ रो क्यों रहे हैं ? यहाँ आइये.. प्यास से मेरा कंठ सूखा जा रहा है, आप जल लेकर आये नहीं अब तक … यहाँ आइये ! यहाँ !”
देवर्षि को अब भान हुआ कि श्री कृष्ण मुझे आवाज़ दे रहे हैं तो वो आवाज़ की दिशा में बढ़े | थोड़ी दूर चलने के बाद वो श्री कृष्ण के पास पहुँच गए | श्री कृष्ण मुस्कुरा रहे थे उन्हें देख के | वो बोले, “नारद आप तो मेरे लिए जल लेने गए थे, किंतु गायब कहाँ हो गए ?जल कहाँ है ?”
नारद जी रोते-रोते बोले, “प्रभु, मेरी पत्नि, मेरे बच्चे इस बाढ़ में बह गए हैं | कृपया उनकी रक्षा कीजिये | मुझे मेरी पत्नि, मेरे बच्चे बहुत प्रिय हैं | मैं उनके बिना जीवित नहीं रह सकता !”
“देवर्षि, होश में आइये .. आपको क्या हो गया ? आपका विवाह कहाँ हुआ है ? आपके बच्चे कब हो गए ?”
“अरे प्रभु, अभी तो गया था मैं उधर.. तो मेरा विवाह भी हुआ और बच्चे भी हुए |”
श्री कृष्ण उन पे हँसे और बोले, “देवर्षि , इसी को माया कहते हैं | आप मुझसे दूर होकर माया के जाल में फँस गए थे | मैं आपको कितना भी समझाता…आप इस तरह से नहीं समझ पाते | यही माया है | यही माया का पाश है…चलिए, अब वापस द्वारिका चलते हैं |”
और दोनों चलते-चलते वापस द्वरिका आ गए | नारद ने उन्हें धन्यवाद कहा और बोले, “प्रभु, इससे उत्तम माया मुझे कोई नहीं समझा सकता था | जय द्वारिकाधीश की ! जय श्री कृष्ण की ! नारायण नारायण ” कहते-कहते नारद जी देवलोक की ओर चले गए !!
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