तलाक… सोहम के कान जलने लगे।
उम्र के इस पड़ाव पर जब लोग अपने बच्चों के बच्चे के साथ खेलते हैं, तब तो सोहम ने शादी की है । अभी शादी के कुछ ही महीने तो हुए हैं । उसकी गलती क्या है – सिर्फ यही न कि रुपम से उसने पूछ लिया – क्या उसकी शादी पहले भी हुई थी ? उसने यह बात क्यों छुपायी ? बस रुपम तो इतने से ही भड़क गई, कहा मैंने तो पहले से ही कहा था कि कभी मेरे अतीत में मत झांकना। तुम मेरे अतीत का पता लगाने गए थे क्या ? क्यों जानना है तुम्हें मेरा अतीत ? क्या करना है तुम्हें…? सोहम ने अपनी बात रखने की कोशिश की.. बहुत कोशिश की कि रुपम संभल जाए.. उसकी बात भी सुने। बस यूं ही कोई मिला और कह गया कि रुपम वही तो नहीं जिनके दो-दो तलाक हुए हैं । शादी के बाद वादा तो यही हुआ था कि हमारे बीच अब कुछ भी छुपा नहीं रहेगा । वह रुपम से तलाक की बात का स्पष्टीकरण अवश्य चाहता था पर तलाक नहीं. लेकिन रुपम ने इस विवाद का अंत किया तलाक पर ।
सोहम सन्नाटे में आ गया। सोहम को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसका मन घबरा गया वह पसीने से नहा गया। रुपम अपना सामान समेट कर जाने की तैयारी करने लगी। सोहम ने कहा मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही है। डॉक्टर के पास ले चलो लेकिन इस पर रुपम ने चिढ़कर जवाब दिया मैं क्या करुं। बुढापे का दिल है। संभाल कर रखो। सोहम ने गिड़गिड़ाते हुए विनती की, प्लीज डॉक्टर को बुला दो। रुपम अपना सामान उठाकर निकल गई। सोहम किसी तरह अपनी एसओएस दवा तक गया और दवा खाकर लेट गया। मोबाइल से एक नंबर मिलाया उसे यह भी पता नहीं था कि वह किसका नंबर था। वह इतना ही बोल पाया कि तबियत खराब है जल्दी आओ। और बिस्तर पर ढ़ेर हो गया। बस यही.. यही समय है जिसके लिए उसने शादी की थी। वह हमेशा इस अकेले-पन की मौत से डरता था। इसलिए तो….
सोहम के स्मृतिपटल पर अतीत की लकीरें उभर आई। वह मात्र 25 वर्ष का तो था ही, नई-नई सरकारी नौकरी लगी थी। खुशी का इजहार करने के लिए उसने अपने माँ-पिताजी को चार धाम की यात्रा पर भेजा था। माँ-पिताजी बहुत-बहुत आशीर्वाद देकर यात्रा पर रवाना हुए। घर में हर कोई खुश था। बड़े सरकारी पद पर आसीन होने का रुतवा ही अलग होता है। अब पापा और उसकी कमाई मिलाकर, घर की परिस्थिति भी सुधरेगी और बहनों की शादी भी अच्छी तरह अच्छे घर में होगी । घर के सभी सदस्य बहुत खुश थे। दिन भर ऑफिस में बीता कर वह घर लौटा। बहन को चाय बनाने के लिए बोल कर जैसे ही उसने रेडियो खोला कि खबर आई… अभी-अभी मिली समाचार के अनुसार बद्रीनाथ जाने वाली एक बस खाई में गिर गई है। सोहम के कानों में सीटियां बजने लगी। वह तुरंत ही भगवान के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। यह कहीं मेरे माँ-पिताजी की बस न हो। भगवान हम पर कृपा बनाये रखना। उस समय संचार का इतना विस्तार नहीं हुआ था। सोहम ने घर से बस स्टैंड दौड़ लगा दी। उसे यह भी ख्याल न रहा कि बस स्टैंड अच्छा-खासा दूर है। घंटो के जद्दोजहद के बाद पता चला कि वह वही बस है जिसमें उसके माँ-पिताजी थे। वह अगली बस से गन्तव्य को रवाना हो गया। प्रशासन ने बमुश्किल बस खाई से निकाली। कुछ लोग इधर-उधर गिरे थे। वह उनमें अपने माता-पिता को ढूढ़ता रहा। एक तरफ लाशो का ढेर था वह बमुश्किल वहां पहुंचा और हर किसी को ध्यान से देखना शुरु किया। तीन लोगो के नीचे दबा कोई कराह रहा था। बड़ी उम्मीद से उसने तीनों लाशों को दर किनार किया और अपनी माँ को देखकर खुशी से झुम उठा। यह तो उसकी माँ है वह भी जीवित….। उसनें किसी तरह स्वास्थ्य सहायक को बुलाकर माँ को उनके हवाले किया। माँ की आँखें भर-भर रही थी। बचपन से उसने माँ में विपरीत परिस्थितियों में भी सुदृढ़ खड़े रहने का जो माद्दा देखा था, वह आज भी नजर आ रहा था. माँ को एबुलेंस में डाल वह पिता की खोज में निकल गया। एक-एक डाल पर लटके लोग पत्थर पर अटके लोगो का उसने अपने लिए तो खंगाला ही साथ ही दूसरों की भी मदद करता गया। मदद के इसी तरदूद में उसे पता लगा कि कुछ लोग खाई से नदी की ओर बह गए हैं। वह नदी की ओर निकल गया लेकिन निराशा ही हाथ लगी। रात-भर माँ की देखभाल और दिन-भर पिता की खोज बस यही जिन्दगी हो गई थी। माँ की भी रीढ़ की हड्डी में चोट थी। डॉक्टर ने कहा कि शायद अब यह कभी खड़ी नहीं हो पायेगी। उसके घर का स्तंभ चरमरा गया था। पिताजी का कहीं अता-पता नहीं चला उधर दफ्तर से भी तार आ गया था। वापस जाने के सिवा कोई चारा नहीं था। माँ बार-बार …पिताजी के बारे में पूछ रही थी लेकिन वह बहुत विवश था। वह वापस दिल्ली आ गया । पिताजी न मृतक के लिस्ट में थे और न ही जीवित के लिस्ट में। उनकी तनख्वाह तो रुक गई लेकिन लाश न मिलने के कारण जीवन बीमा से भी कुछ नहीं मिला। दो महीने बाद फिर छुट्टी लेकर नदी के किनारे-किनारे हर गाँव में फोटो के साथ पर्ची बांट आया लेकिन निराशा ही हाथ लगी। जीवन तो बीतना था सो बीतने लगा। माँ तो बिस्तर से चिपक गई। दोनो बहनें पढ़ाई के साथ-साथ माँ की सेवा भी करती मैं उनकी जरुरतें पूरी करने के लिए जीवकोपार्जन में लग गया।
लेकिन माँ एक उम्मीद की किरण थामे थी कि पिताजी वापस आंएगे। वह तीज, करवा चौथ दोनों ही करती सुहागनों की तरह कि पिताजी कभी भी वापस आ जायेगें। कोई रिश्तेदार कुछ बोलने का प्रयास करते तो माँ उनकी बात सुनकर दुखी होती. इसलिए सोहम सभी रिश्तेदारों से दूरी बनाने लगा अब माँ की आँखों में पिताजी के इंतजार के साथ बहन की चिन्ता भी छलकने लगी । वह बोलती कुछ नहीं थी लेकिन सोहम समझता सब था। एक तो उसके मन में इस बात की कुढन थी कि उसके कारण ही घर की यह स्थिति हो गई। न वह अपनी खुशी में इन्हें तीर्थ के लिए भेजता न ही यह हादसा होता। माँ हमेशा कहती कि होनी को कोई टाल नहीं सकता। माँ सोहम से कुछ नहीं कहती न ही वह कुछ कहता लेकिन वह बेटे मन की बात और बेटा माँ के मन की बात समझता था। इस हादसे मे पांच साल बीत गए लेकिन अब भी जब समय मिलता सोहम पिताजी को ढूढ़ता।
एक बहन ने एमए बीएड कर लिया था। वह नौकरी की तलाश में थी और वह लड़के के तलाश में। लड़का मिला बहुत अच्छा, खाते-पीते घर का लेकिन दहेज ज्यादा था। बहन को लड़का पसंद आ गया था। इसलिए कर्ज लेकर उसकी शादी की फिर उस कर्ज से छुटकारा मिलते ही दूसरी बहन की शादी की। सारी जिम्मेदारी निभाते सात साल तो यू ही बीत गए। मां की ऑखो में अब सोहम के ब्याह का सपना था लेकिन बहनों के जाने के बाद मां की सारी जिम्मेदारी निबाहने लगा। दिन में जितनी देर ऑफिस में रहता उतनी देर के लिए नर्स रख लिया था। मां की उस परिस्थिति का गुनाहगार खुद को समझता साथ इसलिए कभी भी उसके मन मे मां को छोड़ने का विचार नहीं आया। ऐसा नहीं कि इस बीच उसे विवाह का ख्याल नही आया, बहनों ने रिश्ता नहीं सुझाया, लेकिन शायद वह खुद ही दो पाटो में बंटने के लिए तैयार नहीं था। सोहम अब अपनी शौक पूरी करने लगा। पहले तो जमीन खरीद कर बड़ी सी कोठी बनाई, फिर बड़ी सी गाड़ी ली। ताकि उसमें कहीं घूमने जा सके, पर माँ के साथ ये संभव नहीं था ।
समय बीतता रहा। मां बत्तीस साल तक उम्मीद की किरण थामे बिस्तर पर पड़ी रही और एक दिन चली गई। पिताजी के पास गई या भगवान जी के पास – यह सोहम तय नहीं कर पा रहा था। जब सभी रिश्तेदार चले गए तो सोहम को अपने अकेलेपन का अहसास हुआ। वह एक कमरे से दूसरे कमरे में घूमता रहा, उसे लगा कि किसी दिन वह भी चला जाएगा और लोगो को पता भी नहीं चलेगा। यह खौफ उसके मन मे दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा था।
एक बार वह भान्जी के ससुराल शादी में गया, तो भान्जी ने एक महिला से परिचय करवाया। वह पच्चास के ऊपर थी लेकिन 40 के ऊपर नहीं लगती। सोहम की नज़रें उसपर ठहर सी गई। यही रुपम थी। धीरे-धीरे दोस्ती बढ़ी और बात शादी पर आ गई। सोहम की कोठी में रौनक आ गई। दुबली पतली गोरी रुपम से कोठी जगमगा गई, साथ ही सोहम से खुशी संभाली नहीं जा रही थी। वह दफ्तर में आए-गए सभी को अपनी पत्नी का फोटो दिखाता। सभी जब उसकी पत्नी की तारीफ करते तो वह इतना खुश होता कि चेहरे से अहंकार टपकने लगता. ये खुशी उससे संभाले नहीं संभल रही थी । अब ज्यादा से ज्यादा छुट्टी लेकर पत्नी के साथ घूमता फिरता। मन ही मन थोड़ा डरता भी कि कहीं किसी कि नजर न लग जाए। लेकिन लोगों की नगाहों की सराहना उसके हर वहम हर डर को पीछे छोड़ देती। ऐसे ही शादी को कुछ महीने बीत गए थे लेकिन सोहम को ये कल की ही बात लग रही थी। आफिस में जलंधर से मंगलराम आए थे और सोहम ने अपने उत्साह में उन्हें भी अपनी पत्नी का फोटो दिखाया। देखते ही मंगलराम ने कहा अरे यह तो रुपम है। इसकी दूसरी या तीसरी शादी तो पिछले साल ही टूटी है। सोहम का उत्साह तो धड़ाम से गिर गया। क्या रुपम की कई शादियां हुई हैं । वह मंगलराम को फीकी सी हंसी देकर आधे दिन की छुट्टी लेकर घर चला गया।
तभी दरवाजे पर उसने दो तीन लोगों की परछाई सी देखी और बेहोश हो गया। अस्पताल में जब उसकी आँख खुली, तो पता चला दफ्तर के लोग उसे लेकर अस्पताल आए थे। बहनों को खबर की गई। वह अस्पताल पहुंच चुकी थी, लेकिन उसकी पत्नी का फोन आउट ऑफ कवरेज एरिया था। सभी अपनी भाभी को लेकर परेशान थे। उसका मन भी अंदर से चित्कार कर रहा था। उसे माइल्ड हार्ड अटैक आया था। एक सप्राह में अस्पताल से छुट्टी मिल गई। घर गया तो पता चला कि बहनों ने रुपम से संपर्क किया था, लेकिन उसने आने से साफ मना कर दिया। घर आकर उसने भी कई बार उससे संपर्क साधना चाहा लेकिन सब बेकार…। करीब एक महीने बाद जब उसने ऑफिस ज्वाइंन किया, तो ऑफिस का नंबर देखकर उसने फोन उठा लिया। तबियत तो नहीं पूछी लेकिन तीखे स्वर में अवश्य कहा-अब तो ठीक हो गए तुम। चलो तलाक के पेपर भिजवाती हूँ। सोहम रुपम… रुपम करता रहा लेकिन उसने फोन पटक दिया। बार-बार फोन करते रहने पर भी कोई प्रतिउत्तर नहीं था। बहुत कोशिश के बाद भी उसका नंबर नहीं मिला तो उसने रुपम के तथाकथित जीजा जी (सोहम तो बस इसी एक रिश्तेदार को जानता था।) को फोन मिलाया. जीजा जी ने बङी ही बदतमीजी से सोहम को खींसे निपोरते जवाब दिया, चिड़िया उड़ गई सोहम बाबू। अब पंख गिनना छोड़ दो। निराश हताश सोहम सिर्फ और सिर्फ अपने को कोसता रहता। उसकी सेहत दिन-ब-दिन गिरने लगी।
तलाक का केस चलने लगा। रिटायमेंट का दिन भी करीब था। सोहम को हमेशा लगता वह इतनी बड़ी कोठी मे मरा पड़ा है और आस-पास कोई नहीं, उस पर मक्खियां भिनभिना रही हैं । वह क्या करें। उसने घर में नौकरों की फौज रख ली। लेकिन फिर भी वह तन्हा ही था। उसके रिटायरमेंट का दिन आ गया। सभी उसकी अच्छाईय़ो को गिनाने लगे। लेकिन भरी पार्टी में भी उसे अकेलापन और आगे के दिनो की तन्हाई खाए जा रही थी। वह रिटायमेंट पार्टी की कुर्सी पर बैठा-बैठा ही बेहोश हो गया। अस्पताल में आँख खुली तो उसे लगा । वह मर चुका है। अच्छा हुआ वह पार्टी मे ही मर गया। कम से कम लोग तो थे। थोड़ी देर बाद जब नर्स ने आकर सूई चुभोई तो उसे अहसास हुआ कि वह जिन्दा है। नर्स से ही पूछा, क्या हुआ है उसे । नर्स ने डियूटी बजाते हुए कहा हार्ट का प्रोबलम है सर,परसो सर्जरी है। आप बिल्कुल ठीक हो जाएंगे। वह सोचने लगा परसो चलो इस पार या उस पार। दो दिन बाद पता चला कि उसको कुछ कम्पलिकेशन हो गया है। इसलिए ऑपरेशन नहीं हो सकता। लेकिन इन सब से सोहम बहुत खुश था। इसलिए नहीं कि वह बीमार है बल्कि इसलिए कि लोग उन्हें देखने आ रहे हैं। वह लोगों से घिरा रहता। भान्जा भान्जी उनके बाल-बच्चे, बहन-बहनोई और दफ्तर वाले.. वह काफी खुश रहता।
रुपम से तलाक का केस चल ही रहा था। कई बार सोहम ने चाहा कि रुपम उसके पास आ जाए लेकिन हर कोशिश एक चूंके हुए तीर की तरह बिना लक्ष्य पर लगे कहीं खो जाती है। वह उन तीरो को खोजने और समझने का प्रयास करता रहता। 15 दिन बाद ही लोगों का आना-जाना कम होने लगा। यदा-कदा ऑफिस के लोग ऑफिस के पेपर पर हस्ताक्षर लेने आते। वह टीवी देखता या मोबाइल। नर्स के आने पर वह बहुत खुश होता। कोई तो है जिससे वह दो चार-बात करता। फिर तीन दिन बाद उसका ऑपरेशन तय हुआ। लेकिन इस बार उसके आस-पास कोई नहीं था। बहन के पोते की तबियत बहुत खराब थी एक बहन के रिश्ते में शादी थी। अब सोहम को सन्नाटों ने घेरना शुरु कर दिया। उसने बहुत हिम्मत कर रुपम को फोन किया एक बार… दो बार… तीन बार… पच्चीस बार…। रुपम ने फोन उठाया। काफी चहकती आवाज में उसने कहा क्या बात है। मैं व्यस्त हूँ, मेरे पास तुमसे बात करने का टाइम नहीं… सोहम ने कहा रुपम. उधर से आवाज आई। मुझे पता है मेरा नाम रुपम है और तुम सोहम. अब फोन रखो और बार-बार फोन मत किया करो।
सोहम की किसी बात का जवाब उसने सीधे मुंह नहीं दिया। सोचते-सोचते सोहम का दिमाग फटने लगा। दूसरे दिन सोहम का ऑपरेशन था. नर्स कमरे में इंजेक्शन लगाने आई तो सोहम को पसीने से लथपथ देखा। दूसरे दिन खबर आई कि सोहम नहीं रहा। कुछ लोग अंतिम क्रिया में शामिल हुए, लेकिन वे उंगली पर गिने जा सकते थे। तेरहवीं के दिन जब दफ्तर में लोग घर पहुंचे तो घर में ताला लगा था। वहां कोई पूजा-पाठ-हवन या नौकर-चाकर नहीं थे। कोठी सोहम की तरह ही तन्हा खड़ी थी। सोहम को गए अभी पंद्रह-बीस दिन ही बीते होगें कि उसकी तथाक थित पत्नी ने दफ्तर में पहुंच कर हंगामा कर दिया कि सोहम के हर चीज पेंशनस ग्रेजुटी एवं अन्य पैसो पर उसका अधिकार है। दफ्तर का प्रशासन परेशान था। यहां तो तलाक की बात चल रही थी। रुपम का कहना था तलाक का केस चल रहा था लेकिन तलाक हुआ नहीं था इसलिए कानूनन वह सोहम की पत्नी थी। प्रशासन परेशान था दो दिन बाद उन्हें दफ्तर बुलाया गया और दफ्तर के छोटे से बड़े अधिकारी ने हर कानून की किताब छान डाली। इस बीच सोहम की दोनों बहनों ने भी सोहम के पैसे पर दावा ठोंक दिया। बहुत सोच विचार का हर प्रशासनिक पुस्तक को छान-पढकर यह नतीजा निकला कि सोहम के हर पैसे पर उसकी पत्नी का ही हक है। इस तरह सोहम की तथाकथित पत्नी को करोड़ो रुपये की ग्रेच्युटी पेंशन और कोठी मिल गई। ऑफिस मे काफी खुसर-फुसुर होने लगी । सभी रुपम की किस्मत पर गश खाने लगे। रातो-रात वह करोड़पति हो गई, वह भी उस पति के कारण जिसके साथ उसने कुछ महीने ही बिताए थे और तलाक का केस चल रहा था। सोहम की बहनों को पता था कि जितना पैसा वह माँग रही थी सोहम देना नहीं चाहता था। बस इसी बात पर तलाक का केस लटकता जा रहा था लेकिन अब तो सोहम का पूरा का पूरा पैसा रुपम को ही मिल गया। घर, पैसा, गाड़ी सब पर उसका हक था। समय अपनी गति से चलने लगा। अचंभित लोग अब सोहम और रुपम की कहानी भूलने लगे कि एक दिन पेपर में खबर आई कि किसी नौकर ने साजिश कर रुपम को मारने की कोशिश की । इस घटना के बाद वह किसी से मिली थी, तो बताया कि अब वह घर में बिल्कुल अकेली रहती है। वह बहुत शकी और भक्की सी लगी। खुलकर मिलना और खुलकर हंसने का स्वभाव जो रुपम की पहचान थी कहीं खो गई थी। अब वह ज्यादा घर से भी नहीं निकलती। सभी पर शक करती और डरती। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वह असुरक्षित थी। लेकिन एक दिन की खबर ने सभी को अचंभित कर गया। अखबार से पता चला कि जब महीनों से दरवाजा न खुलने और न ही किसी तरह की हलचल न होने की शिकायत पड़ोसियो ने पुलिस से की तो बड़ी मुश्किल से विशाल गेट खोलकर पुलिस अंदर गई तो रुपम का रूप उसे छोड़ चुका था। सिर्फ हड्डी का ढांचा बचा था और बदबू । रुपम कई हफ्तों पहले ही मर चुकी थी। हम सभी हैरान थे कि सोहम जिस अकेलेपन और तन्हाई में मौत से डरता था। वही अंजाम रुपम का हुआ।
तलाक का केस चलने लगा। रिटायमेंट का दिन भी करीब था। सोहम को हमेशा लगता वह इतनी बड़ी कोठी मे मरा पड़ा है और आस-पास कोई नहीं, उस पर मक्खियां भिनभिना रही हैं । वह क्या करें। उसने घर में नौकरों की फौज रख ली। लेकिन फिर भी वह तन्हा ही था। उसके रिटायरमेंट का दिन आ गया। सभी उसकी अच्छाईय़ो को गिनाने लगे। लेकिन भरी पार्टी में भी उसे अकेलापन और आगे के दिनो की तन्हाई खाए जा रही थी। वह रिटायमेंट पार्टी की कुर्सी पर बैठा-बैठा ही बेहोश हो गया। अस्पताल में आँख खुली तो उसे लगा । वह मर चुका है। अच्छा हुआ वह पार्टी मे ही मर गया। कम से कम लोग तो थे। थोड़ी देर बाद जब नर्स ने आकर सूई चुभोई तो उसे अहसास हुआ कि वह जिन्दा है। नर्स से ही पूछा, क्या हुआ है उसे । नर्स ने डियूटी बजाते हुए कहा हार्ट का प्रोबलम है सर,परसो सर्जरी है। आप बिल्कुल ठीक हो जाएंगे। वह सोचने लगा परसो चलो इस पार या उस पार। दो दिन बाद पता चला कि उसको कुछ कम्पलिकेशन हो गया है। इसलिए ऑपरेशन नहीं हो सकता। लेकिन इन सब से सोहम बहुत खुश था। इसलिए नहीं कि वह बीमार है बल्कि इसलिए कि लोग उन्हें देखने आ रहे हैं। वह लोगों से घिरा रहता। भान्जा भान्जी उनके बाल-बच्चे, बहन-बहनोई और दफ्तर वाले.. वह काफी खुश रहता।
रुपम से तलाक का केस चल ही रहा था। कई बार सोहम ने चाहा कि रुपम उसके पास आ जाए लेकिन हर कोशिश एक चूंके हुए तीर की तरह बिना लक्ष्य पर लगे कहीं खो जाती है। वह उन तीरो को खोजने और समझने का प्रयास करता रहता। 15 दिन बाद ही लोगों का आना-जाना कम होने लगा। यदा-कदा ऑफिस के लोग ऑफिस के पेपर पर हस्ताक्षर लेने आते। वह टीवी देखता या मोबाइल। नर्स के आने पर वह बहुत खुश होता। कोई तो है जिससे वह दो चार-बात करता। फिर तीन दिन बाद उसका ऑपरेशन तय हुआ। लेकिन इस बार उसके आस-पास कोई नहीं था। बहन के पोते की तबियत बहुत खराब थी एक बहन के रिश्ते में शादी थी। अब सोहम को सन्नाटों ने घेरना शुरु कर दिया। उसने बहुत हिम्मत कर रुपम को फोन किया एक बार… दो बार… तीन बार… पच्चीस बार…। रुपम ने फोन उठाया। काफी चहकती आवाज में उसने कहा क्या बात है। मैं व्यस्त हूँ, मेरे पास तुमसे बात करने का टाइम नहीं… सोहम ने कहा रुपम. उधर से आवाज आई। मुझे पता है मेरा नाम रुपम है और तुम सोहम. अब फोन रखो और बार-बार फोन मत किया करो।
सोहम की किसी बात का जवाब उसने सीधे मुंह नहीं दिया। सोचते-सोचते सोहम का दिमाग फटने लगा। दूसरे दिन सोहम का ऑपरेशन था. नर्स कमरे में इंजेक्शन लगाने आई तो सोहम को पसीने से लथपथ देखा। दूसरे दिन खबर आई कि सोहम नहीं रहा। कुछ लोग अंतिम क्रिया में शामिल हुए, लेकिन वे उंगली पर गिने जा सकते थे। तेरहवीं के दिन जब दफ्तर में लोग घर पहुंचे तो घर में ताला लगा था। वहां कोई पूजा-पाठ-हवन या नौकर-चाकर नहीं थे। कोठी सोहम की तरह ही तन्हा खड़ी थी। सोहम को गए अभी पंद्रह-बीस दिन ही बीते होगें कि उसकी तथाक थित पत्नी ने दफ्तर में पहुंच कर हंगामा कर दिया कि सोहम के हर चीज पेंशनस ग्रेजुटी एवं अन्य पैसो पर उसका अधिकार है। दफ्तर का प्रशासन परेशान था। यहां तो तलाक की बात चल रही थी। रुपम का कहना था तलाक का केस चल रहा था लेकिन तलाक हुआ नहीं था इसलिए कानूनन वह सोहम की पत्नी थी। प्रशासन परेशान था दो दिन बाद उन्हें दफ्तर बुलाया गया और दफ्तर के छोटे से बड़े अधिकारी ने हर कानून की किताब छान डाली। इस बीच सोहम की दोनों बहनों ने भी सोहम के पैसे पर दावा ठोंक दिया। बहुत सोच विचार का हर प्रशासनिक पुस्तक को छान-पढकर यह नतीजा निकला कि सोहम के हर पैसे पर उसकी पत्नी का ही हक है। इस तरह सोहम की तथाकथित पत्नी को करोड़ो रुपये की ग्रेच्युटी पेंशन और कोठी मिल गई। ऑफिस मे काफी खुसर-फुसुर होने लगी । सभी रुपम की किस्मत पर गश खाने लगे। रातो-रात वह करोड़पति हो गई, वह भी उस पति के कारण जिसके साथ उसने कुछ महीने ही बिताए थे और तलाक का केस चल रहा था। सोहम की बहनों को पता था कि जितना पैसा वह माँग रही थी सोहम देना नहीं चाहता था। बस इसी बात पर तलाक का केस लटकता जा रहा था लेकिन अब तो सोहम का पूरा का पूरा पैसा रुपम को ही मिल गया। घर, पैसा, गाड़ी सब पर उसका हक था। समय अपनी गति से चलने लगा। अचंभित लोग अब सोहम और रुपम की कहानी भूलने लगे कि एक दिन पेपर में खबर आई कि किसी नौकर ने साजिश कर रुपम को मारने की कोशिश की । इस घटना के बाद वह किसी से मिली थी, तो बताया कि अब वह घर में बिल्कुल अकेली रहती है। वह बहुत शकी और भक्की सी लगी। खुलकर मिलना और खुलकर हंसने का स्वभाव जो रुपम की पहचान थी कहीं खो गई थी। अब वह ज्यादा घर से भी नहीं निकलती। सभी पर शक करती और डरती। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वह असुरक्षित थी। लेकिन एक दिन की खबर ने सभी को अचंभित कर गया। अखबार से पता चला कि जब महीनों से दरवाजा न खुलने और न ही किसी तरह की हलचल न होने की शिकायत पड़ोसियो ने पुलिस से की तो बड़ी मुश्किल से विशाल गेट खोलकर पुलिस अंदर गई तो रुपम का रूप उसे छोड़ चुका था। सिर्फ हड्डी का ढांचा बचा था और बदबू । रुपम कई हफ्तों पहले ही मर चुकी थी। हम सभी हैरान थे कि सोहम जिस अकेलेपन और तन्हाई में मौत से डरता था। वही अंजाम रुपम का हुआ।
– ऋतु श्री
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