धर्म ही संपूर्ण जगत का आधार है| धर्म ने ही सभी प्राणियों को एक सूत्र में बाँध कर रखा है| इसके रूप भले ही भिन्न-भिन्न हों, परंतु सभी का केंद्रबिंदु ‘ईश्वरत्व’ की प्राप्ति है| सभी धर्मों की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं| इनमें सभ्यता, संस्कृति, रीति-रिवाज़, नियम-नीति, वेशभूषा, ख़ान-पान, रहन-सहन, व्रत पर्व और त्योहार सभी शामिल हैं| इसी से संबंधित, हम यहाँ कुंभमहापर्व के विषय में चर्चा करेंगे|

“कुंभ” शब्द का अर्थ क्या है? “कुंभ” शब्द का अर्थ घट या घड़ा और विश्व-ब्रह्माण्ड भी है| जिस स्थान पर विश्वभर के धर्म, जाति, भाषा तथा संस्कृति आदि का समावेश हो, वही ‘कुंभमेला’ है| कुंभ हिंदू धर्म का एक बहुत महत्वपूर्ण पर्व है, जिसके दौरान लाखों श्रद्धालु नदी में कुंभ स्नान करते हैं|

कुंभ दो प्रकार के होते हैं- पूर्ण कुंभ और अर्धकुंभ. पूर्ण कुंभ हर बारह वर्ष में होता है और अर्धकुंभ कुंभ हर छह वर्ष में होता है| इस वर्ष २०१९ में अर्धकुंभ 14 जनवरी, मकर संक्रांति से प्रयागराज में प्रारंभ हुआ है और 4 मार्च को संपन्न होगा| इसके पहले 2013 में भी कुंभ पड़ा था जो प्रयागराज में ही हुआ था|

 

इससे जुड़ी पौराणिक कथा इस प्रकार है- दैत्यराज बलि ने जब तीनों लोकों को अपने अधीन कर लिया, तो इंद्र और अन्य देवता भयभीत हो गए. उन्हें अपने प्राण संकट में दिखाई पड़ने लगे. वे भागे भागे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और मदद की गुहार लगायी. भगवान् विष्णु ने कहा, आप सभी अमृत पान क्यों नहीं कर लेते. देवताओं ने पूछा, कहाँ मिलेगा अमृत, प्रभु ? भगवान् विष्णु ने कहा, “उसके लिए आपको समुद्र मंथन करना होगा, किन्तु अकेले आप लोगों से ये संभव नहीं, असुरों का भी सहयोग लेना होगा.

उनकी बात मान कर देवताओं ने असुरों से सुलह किया और उन्हें समुद्र मंथन के लिए आमंत्रित किया. अमृत की लालच में दानव तैयार हो गए .

देवों तथा असुरों ने मिलकर ‘समुद्र-मंथन’ किया| मन्दराचल मंथनी और वासुकी (शेषनाग) रस्सी बने, इनको आधार देने के लिए, स्वयं विष्णु जी ने कच्छपावतार लिया| फिर क्षीर सागर में समुद्र मंथन शुरू हुआ, जिससे एक-एक करके 14 रत्न निकले, सबसे पहले हलाहल विष निकला जिसके प्रभाव से देव दानव सभी मूर्च्छित होने लगे, तो भगवान् शिव ने उसे पीकर अपनी योग शक्ति से अपने कंठ में रोक लिया. विष का प्रभाव समाप्त हुआ, तो मंथन फिर शुरू हुआ. मंथन के दौरान बाकी जो रत्न निकले वे थे – ऐरावत हाथी, कल्पवृक्ष, कौस्तुभ मणि, उच्चै:श्रवा घोडा , चंद्रमा धनुष, कामधेनु गाय, अप्सरा रम्भा, देवी लक्ष्मी, पारिजात पुष्प मदिरा की देवी वारुणी, शंख, बैद्यराज धन्वन्तिरी और आख़िर में अमृत निकला, जिसको पाने के लिए देवता और दानवों में हाथापाई शुरू हो गयी | देवों के संकेत पर अमृत कलश को लेकर इंद्र के पुत्र जयंत स्वर्ग की ओर भागे| उसी छीना-झपटी में अमृत-कलश की कुछ बूँदें पृथ्वी पर गिरीं| जहाँ-जहाँ ये बूंदे छलककर गिरीं, उन्हीं स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है| वे स्थान हैं- हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन| अमृत की प्राप्ति के लिए देवताओं और असुरों में 12 दिनों तक युद्ध हुआ था| देवताओं के 12 दिन पृथ्वी पर मनुष्यों के 12 वर्षों के बराबर हैं, इसलिए कुंभ भी 12 वर्ष के बाद एक स्थान पर लगता है जिसे “पूर्णकुंभ” कहते हैं| हरिद्वार और प्रयाग में “अर्धकुंभ” का भी आयोजन होता है| जो 6 वर्ष के अंतराल में होता है| हरिद्वार और प्रयाग में गंगा नदी बहती है, नासिक में गोदावरी और उज्जैन में क्षिप्रा नदी। कहते हैं कुंभ पर्व के समय इन नदियों में डुबकी लगाने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है. शायद यही वजह है कि कुंभ में देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं यहाँ स्नान के लिए|

कुंभ में शाही स्नान का महत्त्व

शाही-स्नान में केवल अखाड़े ही भाग लेते हैं, कुंभ के अखाड़ों का एक विशेष महत्त्व है, इनकी श्रेणियाँ भी 3 भागों में विभक्त हैं-
1. शैव अखाड़ा.
2. वैष्णव अखाड़ा.
3. निर्वानी या उदासीन अखाड़ा.

इन अखाड़ों के अपने नियम होते हैं| कुंभ के दौरान इनकी भव्यता देखते ही बनती है| विशेष पर्वकाल और त्योहार के दौरान ही शाही स्नान होता है, जिसका अपना अलग महत्व है. २०१९ के कुंभ में ये तारीखें हैं-
• 15 – जनवरी, 4 फरवरी, 10 फरवरी शाही स्नान|
• 21 – जनवरी पौष पूर्णिमा शाही स्नान|
• 31– जनवरी षटतिला एकादशी शाही स्नान|
• 04 – फरवरी मौनी अमावस्या शाही स्नान|
• 10 – फरवरी बसंत पंचमी शाही स्नान|
• 16 – फरवरी जया एकादशी शाही स्नान|
• 19 – फरवरी माघी पूर्णिमा शाही स्नान|

कुंभ की भव्यता और विशालता को देखते हुए ‘युनेसको” ने इसे “विश्व की सांस्कृतिक धरोहरों” में शामिल किया है|
कुंभ मेला प्रशासनिक तौर से जहां बहुत बड़ी चुनौती है, वहीँ इसका अर्थशास्त्र बड़ा ही लुभावना है. अखबारों में छपी खबरों के मुताबिक़ इस मेले में लगभग १,२०,००० करोड़ रुपये के आदान प्रदान का अनुमान है अर्थात कुंभ सिर्फ आस्था को ही नहीं बाज़ार को भी दृढ़ करता है.

संध्या टंडन