1.       छत की ख्वाहिश लाज़मी है मगर बारिश के बगैर बसर कहाँ ,

ऊँची इमारत पसंद है मगर फूटपाथ के बगैर शहर कहाँ

मस्जिदों का नाम बहुत है मगर गरीब की दुवाओं के बगैर असर कहाँ ,

कातिल को रातों रोते देखा है , अब हथियार-खंजर का डर कहाँ

दवाइयों का ऊँचा ढ़ेर है मगर जो ज़ख्म पहचाने वैसी नज़र कहाँ ,

फुलों को देखा , जाना भी मगर ये बता , काँटों वाली रहगुज़र कहाँ !!

City with flyovers

2.       कभी जिन खेतों से पसीने की खुशबू आती थी ,

आज वहां दलालों के पाव हैं

गाँव में तो पेड़ होते थे ,

यहां तो फ्लाईओवर की छाँव है

मकान मिट्टी का है तो क्या ,

बाज़ार में तो सोने के भाव हैं

शिकायत नहीं है ! बस बता रहा हूँ ,

तुमने जहां कल चूमा था , आज वहां घाव है !!

3.   ज़रूरी है कहानी को फिर समझना

कहानी में क़िरदार बहुत हैं

कत्ल से तौबा भूल जाओ

अब कत्ल के भी दावेदार बहुत हैं

कभी इस शहर में दूर दूर से नमाज़ी आते थे

वक़्त ने ज़िद की ऐसी की आज यहां कारागार बहुत हैं

हमने क़ुतुब खाने में काफ़ी वक़्त ज़ाया करके देख लिया

यहां हुक्मरानों की फ़रमाइश पर लिखे अशआ’र बहुत हैं

हम हुजरे में बैठ उनसे इज़हार-ए-मोहब्बत करते

कमबख्त महबूबा को तो पसंद मीनार बहुत हैं

अबे यार ! खुदा के लिए कलम को गरियाना छोड़ दो

गुनाह हमारा है , हम ही दिल-ए-ज़ार बहुत हैं

अब व्हाट्सएप पर लिखे मैसेज काफ़ी नहीं लगते

कभी भरे बाज़ार आकर चूम लो गर प्यार बहुत है !!

4.    रेत में ठिकाने बनाया नहीं करते

मोहब्बत है , ठीक है

हदों से गुज़र जाया नहीं करते

तुम्हारी आवाज़ काफ़ी थी हमारी जान बचाने को

इतनी सी बात पर भीड़ बुलाया नहीं करते !!

– विपुल कुमार