वो कत्थई सी आँखों वाली लड़की हर रात शमादानों में अपने ख़्वाब सज़ा देती थी | लौ के साथ सुबह तक उसके जज़्बात भी जागते रहते थे ..उसकी उम्मीदों की हिम्मत ,..उससे कहीं ‘सौ दफ़ा’ ज़्यादा ताक़तवर थी । तभी तो कभी टूटती ही नहीं दिखती थी ..।यूँ तो इक चुप्पी सी पसरी थी हर ओर ..लेकिन , ख़ामोशियों के शोर ने तो जैसे एक हंगामा बरपा किया हुआ था ..
कल कोई एक पीला सा पड़ चुका फटेहाल सा काग़ज़ का टुकड़ा था उसके हाथ में…!
जाने क्या था उसमें ऐसा कि
उसकी आँखें झील सी हो चली थी ??! ..तभी तो मोती लुढ़कर गिर पड़े थे गालों पर…कोई ज़ौहरी नहीं था शायद उसकी ज़िन्दगी में जो क़ीमत आंकता इन मोतियों की…! कभी न थकने वाली हिम्मत आज पुरानी पड़ी चारपाई सी चरमरा उठी थी ।
किसीने कभी उसे किसीसे बात करता हुआ भी नहीं देखा था और न ही किसीको उस हवेली में जाते हुए …
अगर ,कुछ देखा था तो बस बरामदे में पड़ी उस ‘आरामकुर्सी’ को घंटों एकटक निहारते हुए..
कभी कोई बैठा भी नहीं दिखा उसपर ।
वक़्त का असर सिर्फ़ उसकी आँखों के नीचे पड़े स्याह घेरों में ही दिखती थी ..रंग बिलकुल ऐसा जैसे किसीने दूध में केसर घोल दिया हो..और रूप ऐसा कि हर रूपसी को उससे ईर्ष्या हो जाए।
लेकिन , इस रहस्यमयी रूपसी के ह्रदय में क्या था ये किसी को भी पता नहीं था…और हो भी क्यूँ ? सब मग्न थे अपने संसार में ….
मुहल्ले की सुबह आज मुर्ग़े की बाँग या चिड़ियों की गूँज से नहीं हुई थी । बल्कि , आज पुलिस की गाड़ी के सायरन की आवाज़ सुबह सवेरे सबको चौंका गई ….दरवाज़े और खिड़कियों की आँखें लोगों से पहले खुल गई थी । हर झाँकते चेहरे पर एक ही सवाल था …
पुलिस और यहाँ ? क्यूँ ??
तभी ,इस ‘ रहस्य ‘ को दुगना करने वाला एक और वाक़या हुआ…सबकी आँखें सिकुड़ गई थी और चेहरों के रंग पल पल बदलने लगे थे …
क्यूँकि , उस वीरान सी पड़ी हवेली के बरामदे में पुलिस की वर्दी में लोग घुम रहे थे …और वहाँ से एक ख़ास गाड़ी जो अभी निकली थी उसपर लिखा था …
“अंतिम यात्रा”
लोग अपने-अपने हिसाब से अटकलें लगा रहे थे …’शायद कोई घर में “बूढ़ा बीमार” होगा ‘…लेकिन ये पुलिस ??????????…….तभी उस हवेली की एकमात्र बाहरी इंसान ने उस लोहे के विशालकाय द्वार से अपना क़दम बाहर रक्ख़ा …वो बूढ़ी औरत उस हवेली की एकमात्र कर्मचारी थी । आज उस उपेक्षित सी प्राणी की भी दो पलों में ” राजनेता” सी पदोन्नति हो गई थी …अब लोगों के ‘जिज्ञासा की सुनामी ‘ ने पूरे वेग से उस ‘कृशकाय कृष्णवर्णी ‘ को अपने लपेट में ल ले लिया था ..
किसकी मृत्यु हुई? कौन था ? कौन कौन रहता रहता था वहाँ ? क्या हुआ है ?? पुलिस क्यूँ आई है??? जवाब में उसके आँखों में आँसू थे और गला वेदना से अवरुद्ध था …जैसे तैसे बस इतना ही कह पाई …
अब सो गई “वो”हमेशा के लिए ..!!
न जाने कितनी रातों से इंतज़ार में जागती रही थी ..थक गई थी मालकिन मेरी …अब किसकी बाट जोहती जब आने वाले ने कह ही कह दिया कि ” कौन लगती
है वो उसकी ? ..इक पुरानी याद ही तो है बस उसके लिए धुँधली सी ..”
बस इतना ही पता चला उस सुबह कि…चिर निद्रा में निमग्न “रहस्यमयी रूपसी” के पलंग के सिरहाने पर नींद की गोलियों की नई ख़ाली सीसी लुढ़की पड़ी थी …और एक डायरी का फड़फड़ाता पन्ना बस अपने ज़िंदा होने का अहसास दिला रहा था…जिसपर जाने वाली ने शायद अंतिम बार अपने दिल की बात लिखी थी कुछ इस तरह …” आँखें रोई , सपने रोए ,दिल रोया …अब तो हर रात सिसकियाँ सुनाई देती है सीने में धड़कन की जगह …!!”